हमारा उद्देश्य प्रयोगात्मक रूप से यह दिखाना है कि कार्बन डाइऑक्साइड श्वसन के दौरान बाहर निकलती है।
श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है। श्वसन के दौरान ग्लूकोज जैसे सरल कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा मुक्त करने के लिए टूट जाते हैं। सजीव प्राणियों- मनुष्य, पौधों और जंतुओं की हरेक कोशिका श्वसन करती है।
पौधों में श्वसन का अध्ययन अंकुरित हो रहे भीगे बीजों में किया जा सकता है। श्वसन के दौरान ये कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) मुक्त करते हैं। बीजों को हवाबंद शंक्वाकार फ्लास्क में रखा जाता है। पोटेशियम हाइड्राक्साइड (KOH) साल्यूशन युक्त एक छोटा सा टेस्ट ट्यूब फ्लास्क में रखा जाता है। पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड बीजों द्वारा छोड़ा जाने वाला कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर लेता है और फलस्वरूप फ्लास्क में आंशिक वैक्यूम बन जाता है। इससे डिलीवरी ट्यूब में पानी का स्तर बढ़ जाता है।
मानुष्यों में श्वसन का अध्ययन चूने के पानी से किया जा सकता है। चूने का पानी श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड से प्रतिक्रिया करता हैं जिससे कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) बनता है। यह चूने का पानी दूधिया बना देता है। ताजा तैयार किया गया चूने का पानी बॉयलिंग ट्यूब में लिया जाता है और दो ग्लास ट्यूब के साथ एक कॉर्क, कॉर्क में डाल दिया जाता है। ग्लास ट्यूब का एक सिरा चूने के पानी में डुबो दिया जाता है और इस ग्लास ट्यूब से होकर पूरी ताकत से हवा फूंकी जाती है। बाहर छोड़ी गई सांस की हवा के बुलबुले धीरे-धीरे चूने के पानी को दूधिया बना देते हैं। इससे पता चलता है कि मानव श्वसन में कार्बन डाइऑक्साइड बनती है।
श्वसन वह प्रक्रिया है जिसमें ग्लूकोज जैसे सरल कार्बोहाइड्रेट सरल पदार्थों में टूट जाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा मुक्त करते हैं। श्वसन के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा होती है। श्वसन दो प्रकार के होते हैं- वायवीय (एरोबिक) और अवायवीय (ऐनारोबिक) ।
वायवीय (एरोबिक) का अर्थ है 'हवा के साथ'। इस प्रकार के श्वसन के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, इसलिए इसे वायवीय (एरोबिक) श्वसन कहा जाता है। वायवीय (एरोबिक) श्वसन के दौरान कार्बोहाइड्रेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है।ऑक्सीजन ग्लूकोज को ऊर्जा मुक्त करने के लिए तोड़ देती है जबकि कार्बन डाइऑक्साइड और पानी इस प्रतिक्रिया का गौण उत्पाद होते हैं । इस मुक्त ऊर्जा का इस्तेमाल एडीनोसाइन ट्राईफास्फेसट (एटीपी) नामक ऊर्जा का विशेष अणु बनाने में होता है। एटीपी वहां होता है जहां शरीर द्वारा बाद में इस्तेमाल के लिए ऊर्जा भंडारित होती है । वायवीय (एरोबिक) श्वसन पौधों के साथ ही जंतुओं में भी होता है। यह माइटोकॉन्ड्रिया में होता है।
वायवीय (एरोबिक) श्वसन के लिए शब्द समीकरण (वर्ड इक्वेशन) है:
रासायनिक समीकरण है:
अवायवीय (ऐनारोबिक) का मतलब ‘बिना हवा के’ होता है। कभी-कभी जंतुओं और पौधों के चारों ओर साँस लेने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होती है, लेकिन उन्हें तब भी जीवित रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है,इसलिए उस ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए जिसकी उन्हें जरूरत होती है वे ऑक्सीजन के अभाव में श्वसन करते हैं। जब श्वसन ऑक्सीजन के अभाव में होता है तो, भोजन का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है और बहुत कम ऊर्जा मुक्त होती है। हालांकि, कार्बन डाइऑक्साइड तब भी बनती है। इसे अवायवीय (ऐनारोबिक) श्वसन कहा जाता है और यह प्रक्रिया कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) में संपन्न होती है।
पौधों में अवायवीय (ऐनारोबिक) श्वसन के लिए शब्द समीकरण(वर्ड इक्वेशन) है:
रासायनिक समीकरण है:
जंतुओं में अवायवीय (ऐनारोबिक) श्वसन के लिए शब्द समीकरण (वर्ड इक्वेशन) है:
रासायनिक समीकरण है:
श्वसन की दर को प्रभावित करने वाले कुछ कारक यहां दिए जा रहे हैं।